Dillagi Hindi Shayari is a fun and flirtatious collection of shayaris that capture the playful side of love and affection. These witty, charming, and lighthearted shayaris are perfect for expressing your flirtations, teasing your crush, or sharing cute moments with someone special. Whether you're in the mood for some fun banter or just want to add a joyful twist to your romantic expressions, Dillagi Shayari brings smiles, laughter, and love with every word. Share these playful lines to make your love life even more exciting.
मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशी की वजह थे तुम,
मेरा सच्चा प्यार थे तुम,
कोई दिल्लगी नहीं थे तुम !
तुझे महोब्बत कहा थी बस दिल्लगी थी,
वरना मेरे पल भर का बिछड़ना भी तेरे,
लिए क़यामत होता ।
वोह तेरी होश ओ हवास मे बेरुखी अच्छी,
ना थी,
या फिर तेरी मुख़्तसर सी दिल्लगी अच्छी,
ना थी !
ऐसा कोई पल नहीं जब मैंने तुम्हे याद,
न किया हो और ऐसा कोई पल नहीं जब तुमने,
मुझे याद किया हो हम तुम से प्यार करते रहे और,
तुम हमसे दिल्लगी करते रहे !
तीर पे तीर खाए जा और यार से लौ लगाये जा,
आह न कर लबों को सी इश्क़ है दिल्लगी नहीं !
तुम्हारे बाद जो होगी वो दिल्लगी होगी,
मोहब्बत वो थी जो तुम पे तमाम कर बैठे !
तेरे होने से ही मेरे जीवन में बहार हो,
ये जीवन तो तेरा हे,
तेरे इलावा कोई ना इस दिल में,
फिर चाहे ये दिल पे तेरे नाम का,
ताला लग जाये !
हमने भी बहुत दिल लगा कर देख लिया है,
चलो थोड़ी दिल्लगी भी कर ले,
जहां वफ़ा नहीं जीत सकी,
थोड़ी बेवफाई ही आज़मा ले!
बे-ज़ार हो चुके हैं बहुत दिल्लगी से हम,
बस हो तो उम्र भर न मिलें अब किसी,
से हम!
दिल्लगी नहीं ये मेरे मासूम प्यार की,
कल्पना है अगर मैं हर रोज़,
तुम्हारे साथ ही उठूं तो वो,
सुबह कितनी खूबसूरत होगी!
कोई दिल की ख़ुशी के लिए,
तो कोई दिल्लगी के लिए,
हर कोई प्यार ढूंढ़ता है यहाँ,
अपनी तनहा सी ज़िन्दगी के लिए !
दिल्लगी करते सभी है दिल लगाते है नही,
दर्दे-दिल की है दवा क्या ये बताते है नही !
अगर कोई तुम्हारे लिए सब कुछ हो जाता,
है तो दूरीयां मायने नही रखती,
और उसको सच्चा प्यार किया,
जाता है दिल्लगी नही !
दिल्लगी नाम रख दिया किसने,
दिल जलाने का जी से जाने का !
मुझमे ईर्ष्या नहीं है और ना मैं दिल्लगी,
करता हूँ मैं बस तुम्हें खोने से डरता हूँ !
ये मज़ा था दिल्लगी का कि,
बराबर आग लगती,
न तुम्हें क़रार होता,
न हमें क़रार होता !
मोहोब्बत एक बार ही होती है,
तुम ने जो की वो दिल्लगी है,
जो बार बार होती है!
कोई भी रिश्ता वायदे से नहीं बन सकता,
इसके लिए प्यार दृढ़ संकल्प और विश्वास चाहिए !
तुझे हक दिया है मैंने मेरे साथ दिल्लगी,
का मेरे दिल से खेल जब तक तेरा दिल,
बहल ना जाए !
दिल्लगी ही दिल्लगी में दिल गया,
दिल लगाने का नतीजा मिल गया !
प्यार को इस बात से नहीं तोला जाता के,
आपने किसी के लिए कितनी,
प्रतीक्षा की बल्कि ये समझने में है,
के आप प्रतीक्षा क्यों कर रहे हैं !
हमारी कद्र उनको होगी तन्हाईयो,
में एक दिन अभी तो बहुत लोग हैं,
उनके पास दिल्लगी करने को !
चाहत का दिल में नामो-निशाँ ना रहे,
या तो ख़त्म हो कशमकश तेरी या मेरी,
दिल्लगी का आशियाँ ना रहे !
मैं तुमसे इतना प्यार करता हूँ जितने,
आकाश में तारे हैं और समुन्दर में,
मछलियां है !
ना तोल मेरी मोहब्बत को,
अपनी दिल्लगी से,
देख कर मेरी चाहत को,
अक्सर तराजू भी टूट जाते हैं !
मुख्तसर सी दिल्लगी से तो,
तेरी बेरुखी अच्छी थी,
कम से कम ज़िंदा तो थे,
एक कस्मकस के साथ !
अगर किसी ने मुझसे पूछा कि मेरा,
भविष्य कैसा दिखता है,
तो मैं उन्हें आपको दिखाउंगी !
ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत,
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत!
दूरियां बढ जाए या फासले हो दरमियान,
धडकन थम जाए चाहे होठ हो बेजबान,
दिल्लगी रहेगी शादाब इश्क़ रहेगा नौजवान!
मैं हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वो,
हमें एक पवित्र गाँठ में बाँध लें ताकि हम,
हर पल एक साथ बिताएँ।
हम ने जाना था लिखेगा,
तू कोई हर्फ़ ऐ ‘मीर’,
पर तेरा नामा तो इक शौक़,
का दफ़्तर निकला !
कुछ पाबंदी भी लाज़मी है,
दिल्लगी के लिए किसी से इश्क़,
अगर हो तो बेपनाह न हो !
यदि आप बदले में कुछ की उम्मीद करते हैं,
तो इसे प्यार नहीं व्यापार और दिल्लगी,
कहा जाता है।
दिल्लगी कर जिंदगी सेए दिल लगा के चल,
जिंदगी है थोड़ी हमेशा मुस्कुराते चल !
माना दोस्त कि दिल्लगी तेरी फ़ितरत नहीं,
फ़िर वाबस्तगी मुझसे क्यों तेरी हसरत नहीं!
जब भी मैं आपकी तरफ देखता हूँ,
तो मुझे डर लगता है क्योंकि जितना,
मैं आपको देखता हूँ उतना ही,
आपसे दिल्लगी बढ़ती है !
तुम्हारी दिल्लगी देखो हमारे,
दिल पर भारी है,
तुम तो चल दिए हंसकर,
यहाँ बरसात जारी है!
मैं उसके प्यार में खो गया और मैं,
ऐसे ही खोना चाहता था और ये दिल्लगी,
मुझे कहाँ लेके जाएगी।
क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि,
उठ न जाएँ नाराज़ दिल-लगी में,
जो वो इक ज़रा हुए!
कभी प्यार करना कभी लड़ाई करना,
वो ऐसे ही करते हैं दिल्लगी मुझसे!
नज़रों का क्या कसूर जो दिल्लगी,
तुमसे हो गयी,
तुम हो ही इतने प्यारे,
कि मोहब्बत तुमसे हो गयी !
मिले वो यार जो दिल की लगा कर,
हमें बहला रहे हैं दिल्लगी से !
मुझे कोई सपना मत समझना,
जिसे तुम अगली सुबह भूल जाओ,
ओ दिलबर साथ निभाना,
दिल्लगी न करना!
दिल तोडना किसी का ये जिदंगी नही,
इबादत थी मेरी कोई दिल्लगी नही!
मज़ा आ रहा है दिलबर से दिल्लगी में,,
नज़रे भी हमी पे है और पर्दा भी हमी से है!
दिल्लगी करना जरा देख के करना,
कहीं तुम्हारी दिल्लगी में,
कहीं देर न हो जाये!
मेरे सनम की दिल्लगी न पूछो,
यारो गैर का ख़त,
लिफाफे में रख कर उसपर,
मेरा ही पता लिख दिया है!
किसी ने दिल्लगी जाना,
मगर हमारा दिल ख़ुदा का घर था,
मुसाफ़िर क़ियाम रखते थे !
हमने तो दिल पूरी ईमानदारी,
से लगाया था,
मगर उसने तो हमारे दिल,
को कांच समझ के तोड़ दिया!
कुछ ऐसी बेरुखी से तकता है,
हमको दिलबर,
अब दिल्लगी भी उसकी,
दिलकी लगी है!
कोई दिल-लगी दिल लगाना नहीं है,
क़यामत है ये दिल का आना नहीं है !
अब तो मुझको लोग तेरे नाम से,
पहचानते हैं दिल्लगी में रुतबा,
हमने भी पाया है !
अन छुए अरमानों को दिल के,
अब तेरी ही सूरत है,
इजाजत हो ना हो किसी की,
तुझसे दिल्लगी की सहूलत है !
तलब तमनाएँ सब अधूरी रह जाती है,
अक्सर दिल जिसे चाहता है,
उससे दुरी रह जाती है!
नसीम-ए-सुबह गुलशन में,
गुलों से खेलती होगी,
किसी की आखरी हिचकी,
किसी की दिल्लगी होगी!
कोई दिल की ख़ुशी के लिए,
तो कोई दिल्लगी के लिए,
हर कोई प्यार ढूंढ़ता है यहाँ,
अपनी तनहा सी ज़िन्दगी के लिए !
क़लम उठाते हैं काग़ज़,
से दिल्लगी करते हैं,
लफ़्ज़ों के शहर में एक,
पाक मोहब्बत करते है !
कुछ यूँ हुवा हाल दिल्लगी में चोट खाकर,
वफाए फितरत में रह गई और मोहब्बत से,
वास्ता न रहा !
धड़कनें बढ़ा गई उसकी जरा सी दिल्लगी,
खुदा करे उसका जाक ही सच हो जाए!
टूटे हुए दिल ने भी उसके लिए,
दुआ मांगी न जाने कैसी दिल्लगी थी,
उस बेवफा से मैंने आखिरी ख्वाहिश,
में भी उसकी वफ़ा मांगी!
ये मज़ा था दिल्लगी का,
कि बराबर आग लगती,
न तुम्हें क़रार होता,
न हमें क़रार होता!
दिल की इस लगी को न,
दिल्लगी समझिए मौत का सामान है,
इश्क इसको न जिंदगी समझिए!
अच्छी नहीं होती है गरीबों से दिल्लगी,
टूटा कहीं जो दिल तो बनाया न जायेगा!
हमने तो बिना सोचे ही उनसे,
दिल्लगी कर ली,
अगर सोच के करते तो,
कभी मोहब्बत ना होती
चाहत है या दिल्लगी या,
यूँ ही मन भरमाया है,
याद करोगे तुम भी कभी,
किस से दिल लगाया है!
दिल्लगी में बहुत जख्म मिले,
मेरा मेहबूब मुस्कुराता बहुत था !
अच्छी नहीं होती है गरीबों से दिल्लगी,
टूटा कहीं जो दिल तो बनाया न जायेगा !